खुली आँखों का ग़ज़लकार — निश्तर ख़ानकाही

कई अन्य भाषाओं की भाँति हिन्दी कवि भी आज ग़ज़ल की ओर इतना आकर्षित क्यों है? यह सवाल कई बार मेरे सम्मुख आया। कहीं ऐसा तो नहीं कि नए युग की ‘साहित्यिक अराजकता’ के कारण आधुनिक कवि उस मार्ग की तलाश में एक ऐसी विधा की तरफ़ लपक रहा हो, जिसमें अनुशासन भी है और … Continue reading खुली आँखों का ग़ज़लकार — निश्तर ख़ानकाही